लड़कपन का प्रेम

लड़कपन का प्रेम
बहुत चाहता था किशन उस नीली आँखों वाली गोरी चिट्ठी फरीदा को, लेकिन फरीदा को इस बात की भनक भी नहीं थी. एक ब्राह्मण परिवार में पैदा हुआ किशन पूरे ब्राह्मण दर्शकों के साथ पला बड़ा था, उस कस्बे में बड़ी साख़ थी उसके पिताजी जी दीन बाबू की. किसन पड़ने लिखने में बहुत साधारण था. सहशिक्षा विद्यालय में पड़ते हुए अपनी सहपाठी फ़रीदा को मन ही मन चाहने लगा, फरीदा किसन से बात तो किया करती थी लेकिन यह नहीं जानती थी की किसन के मन में उसके लिए प्रेम उपज रहा है.

फरीदा के अब्बू कस्बे के जाने माने हकीम थे, पूरे कसबे के लोग उनसे इलाज करवाने आते थे उनकी बहुत साख थी और सभी लोग उनका बहुत सम्मान करते थे. फरीदा का घर पक्की सड़क किनारे था वहां से मुख्य रास्ता निकल रहा था, उस रस्ते पे कस्बे के सभी लोगो का आना जाना था.

किसन उस रास्ते से सुबह शाम 4-5 बार गुजरा करता कभी किस बहाने से कभी किस बहाने से, एक दिन सुबह सुबह किसन सायकिल ये उस रस्ते से गुजरा तो ठीक फरीदा के घर के सामने एक बड़े पत्थर से टकराकर सायकिल से गिर पड़ा फरीदा की माँ आंगन में झाड़ू बुहारी कर रही थी उन्होंने किसन को गिरा हुआ देखा और दौड़कर आई और किसन को उठाकर घर के अंदर ले आई, बड़ी चोट आई थी किसन के पैरो में लगी चोट के कारण खून निकल आया था, हकीम साहबहकीम साहब किसी रिस्तेदार के यहाँ गए हुए थे तो फरीदा की माँ ने फरीदा को आवाज देकर बुलाया और कहा कि इस लड़के के चोट लगी है जरा इसकी पट्टी कर दे, फरीदा किसन को देख कर बोली अरे किसन सुबह सुबह कहाँ को निकले थे और चोट खा बैठे। किसन क्या कहता बेचारा वो बोला माँ ने कुछ फूल मंगवाए थे पूजा के लिए वो लेने के लिए मालन की बाड़ी में जा रहा था लेकिन तुम्हारे घर के सामने बड़ा पत्थर पड़ा था तो चोट खा बैठा।

फरीदा ने मलहम निकल कर किसन के पट्टी करना शुरू किया, लेकिन किसन तो फरीदा का स्पर्श पाते ही अपना सारा दर्द भूल चूका था और फरीदा तो बड़ी बड़ी आँखों से एकटक देखे जा रहा था और फरीदा इस बात से बेखबर थी, लेकिन फ़रीदा की माँ ने इस बात को भांप लिया था. किसन पट्टी करवा कर चला गया लेकिन फरीदा की माँ विचलित हो गई थी और आने वाली मुसीबत को समझ रही थी.
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