बूंदी के नाहरमार दादाजी का किस्सा

प्यारा संगी साथियों , घणी खम्मा। म्हारो प्रणाम स्वीकार करो।
अठे म्हूँ आपणे जो बात बता रह्यौ छूँ , वा सच्ची बात छै। म्हारी आँख्या देखि बात तो कोणी , पर राजस्थान री ई धरती पे एक सु एक वीरां ने जणम ल्यो है, सो म्हार तो मानबा में आगी

बूंदी रा रहबा वाला अशोक कुमार जी ने ओ किस्सो भेजो छै , वांका इण किस्सा ने वांका शब्द में यहाँ प्रकाशित करियो है :

राजस्थान रा बून्दी जिला रा बूंदी शहर में अशोक कुमार जी रवेह है , इण रा परदादा जी रोजाणा भाँग खावे था , मित्रो बूंदी री भांग प्रसिद्ध छै. वो दादासा एक दिन जंगल माहि हाथमुंडा धो बा गया , अतरां में सामने से नाहरड़ो आ ग्यो , वाकां हाथां में लोठ्यो छो और भाँग री पिनक में वो छा ही , उ नाहरडा के वानः लोठ्या की देफाड़ी, अब उ नाहडो तो वांही मर ग्यो , लाग गई होवली कोडी माथा वाथा माहीं और वो दाजी नाहरमार सा बाग बा लागग्या और दरबार न जब या बात सुनी तो वाकों घणो आदर करियो और पुरस्कार स्वरुप एक हवेली दी ।

अस्या वीरा ने म्हारो ढोक।
साभार: अशोक कुमार शर्मा (सेवानिवृत प्राचार्य) लाखेरी (बूंदी) राजस्थान