मेरे अग्रज श्री श्री गोपाल जी (मेरे ताऊजी के मध्यम पुत्र) की पत्नी श्रीमती विमला देवी जी अपने पति के देहावसान के पश्चात बहुत वर्षों तक अपने छोटे बाल बच्चो के लालन पालन में अपने दुःख भरे गहरे घावों को भूलती सी धीरे धीरे ईश्वर भक्ति की भावधारा में आत्मविस्मृत सी रहने लगी थी, जब भी उन्हें अवसर मिलता कथा कीर्तन भजन पूजन में लगी रहती थी.
संयोगवश कुछ यात्रियों का जत्था बूंदी से बद्रीनाथ की यात्रा को जा रहा था, सभी उनके मोहल्ले के परिचित थे अतः भाभीजी भी उनके साथ हो लिए, उस यात्रा के दौरान उनके साथ जो घटना हुई उसे उन्होंने हम सभी को बड़े आनंदित एवं रोमांचित भाव से सुनाया, जिसे मैं उन्ही के शब्दों में व्यक्त कर रहा हूँ.
बद्रीनाथ के दर्शन के उपरांत हमारा समूह वापिस लौट रहा था अपरान्ह का समय लगभग ३-४ बजे हम सब तेज गति से चल रहे थे, दिन ढलने के पहले हमें अपने गंतव्य स्थान तक पहुंचना था, अचानक मुझे लघुशंका की शिकायत हुई, मैं धीरे धीरे चलने लगी और एक स्थान पे रुक कर निवृत हुई तो देखा कि हमारे साथ के लोग बहुत आगे निकल गए थे, कोई दिखाई नहीं दे रहा था, दिन ढल रहा था, बादल गरजने बरसने लगे थे और मैं असहाय सी अपनी गति बढ़ाकर अपने साथियों तक पहुँचने का प्रयास कर रही थी, आधे घंटे तक दौड़ लगाने के बाद भी मुझे उनका कोई नामोनिशान नहीं मिल सका शायद मैं रास्ता भटक गई थी.
सुनसान जगह बर्फीले पहाड़ बरसते बादल और मैं अकेली असहाय निराश होकर एक पेड़ के नीचे खड़ी हो गई और मन ही मन भगवान से सहायता की पुकार करने लगी, कुछ क्षणों तक नेत्रों से अश्रु बहाते हुए उस परमात्मा को पुकार रही थी, तभी अचानक से कहीं से दो किशोर वय के बालक हाथो में लकड़ी घुमाते हुए मेरी ओर आते दिखाई दिए, मुझे देखकर बोले मैय्या क्या बात है क्यूँ रो रही हो ! मैंने अपनी व्यथा बताई अपने साथियों से बिछुड़ जाने और उस अनजान मार्ग में असहाय होने की बात सुनकर वे बोले मैया आप रास्ता भटक गई हो लेकिन घबराइए मत हमारा गॉंव नीचे पहाड़ी पर ही है आप हमारे साथ आ जाइये हम आपको आपके साथियों से अवश्य ही मिलवा देंगे।
उनकी बातों से मुझे धैर्य आया और परमात्मा का लाख लाख धन्यवाद देती हुई उनके पीछे चलने लगी लगभग १ घंटे चलने के बाद गाँव दिखाई देने लगा, लगभग रात हो गई थी, दोनों मुस्कुराते हुए बोले कि मैया आपने सुबह से भोजन भी नहीं किया होगा इसलिए पहले आप भोजन कर लें फिर हम आपको आपके संगी साथियों तक पहुंचा देंगे, मैं भूखी थी पर पहले साथियों से मिलना चाह रही थी अतः मैंने कहा नहीं नहीं मुझे बिलकुल भी भूख नहीं है आप मेरे साथियो को ढूंढ़ने में मेरी सहायता करने की कृपा करें, दोनों मुस्कुराते हुए बोले मैया हम पे विश्वास नहीं है क्या? पहले आप भोजन करें ये कहते हुए वो मुझे एक ढाबे पे लेकर गए, मैंने कहा भैया आप लोग भी खाना खा लीजिये तो वो बोले हम तो घर पे खा लेंगे आप चिंता ना करें और भोजन करें। थोड़ी देर में भोजन की थाली आ गई मैंने मन ही मन बद्रीविशाल का स्मरण किया और खाना आरम्भ कर दिया वे दोनों मेरी यात्रा की बाते पूछते रहे, भोजन करने के बाद जब मैं पैसे देने लगी तो वो बोले मैया पैसे तो हमने दे दिए आप तो हमारी अतिथि हो, तभी दूर से हमारे समूह की एक साथी महिला ने मुझे आवाज लगाई अरे भाभी जी आप कहाँ रह गए थे , मैंने उधर देखा तो मेरे सभी साथ वाले समूह के लोग उसी ढाबे पे भोजन कर रहे थे, ये देख कर मुझे बड़ी तसल्ली हुई और उन दोनों बाल किशोरों को धन्यवाद देने के लिए पीछे घूमकर देखा कि वे तो वहाँ थे ही नहीं, ढाबे से बाहर निकली तभी मेरे सभी संगी साथी आ गए और बोले आप कहाँ रह गई थी हमने बहुत देर तक आपका इंतजार किया, मैं उनकी किसी बात का जवाब नहीं दे पा रही थी मेरी हालत पागलो जैसी हो रही थी और मन में सोच रही थी कि कौन थे वो दोनों बालक जो मुझे मैय्या मैय्या कहकर भोजन करवाकर स्वयं भुगतान कर गए जो मेरा ध्यान भटका कर स्वयं अंतर्धान हो गए.
साथियों को जब मैंने इस घटना को सुनाया तो सबको बड़ा आश्चर्य हुआ और उन्होंने कहा कि भाभी जी आप तो बड़े भाग वाले हो आपका भाग्य धन्य है यात्रा का अच्छा फल तो आपको ही मिला है.
इस घटना को सुनाने के बाद मेरे प्रिय भाभी जी ने मुझसे कहा मैं जब भी अपने घर में कृष्ण बलराम के चित्र को देखती हूँ तो मन ही मन पूछती हूँ बोलो तुम्ही दोनों थे न जो मुझे ठग कर चले गए.
आज भी जब इस घटना का स्मरण होता है तो मन आनंद से भर जाता है.
श्रीमती विमला देवी जी बूंदी वालो की बद्रीनाथ यात्रा का अपूर्व अनुभव।
साभार: अशोक कुमार शर्मा (सेवा निवृत्त प्राचार्य, लाखेरी (बूंदी) राजस्थान।