लेखक: विद्यानन्द गुप्ता (अधिवक्ता) लाखेरी (अरनेठा) जिला बूंदी राजस्थान.
भारतीय समाज में आरंभ से पुत्र संतति की महत्ता को माना गया, पुत्र के अभाव में जीवन अपूर्ण माना जाता रहा है और पुत्र के बिना
भवमुक्ति नहीं हो सकती। यही कारण रहे कि समाज मे पुत्र की महत्ता पुत्री की अपेक्षा अधिक रही। पुत्री विवाह के बाद दूसरे घर चल जायेगी जबकि बेटा साथ में रहकर सेवा सुश्रुषा करेगा, मृत्यु होने पर अंतिम संस्कार और पिंडदान आदि तर्पण करेगा जिससे सद्गति और मुक्ति मिलेगी, जबकि पुत्री न साथ रहेगी न सेवा करेगी न पिंडदान करेगी तो उसका होना न होना कोई मायने नहीं रखता।
कालांतर में बेटी का विवाह, उसका व्यय उसके ऋण से परिवार का दब जाना अन्य सामाजिक रीतियाँ जिनको निभाना दुष्कर हो गया.एक अन्य कारण बडते यौन अपराध .इन सभी कारणों बेटी की सुरक्षा संरक्षा आदि कारणों से भी इस मानसिकता को बल मिला।
विग्यान के युग में नवीन आविष्कारों और यंत्रों के माध्यम से गर्भ में लिंग की जानकारी हो जाने से इसको व्यापक बढावा मिला।
कण कण मे प्राणीमात्र में ईश्वर की संकल्पना वाला भारतीय समाज वृक्षों में देवताओं का निवास मानकर पूजने वाला भारतीय समाज अहिंसा और शांति का अखिल विश्व को संदेश देने वाला समाज धरती पर चलते समय नीचे चल रही चींटी को भी देखकर और पैर रखने से पहले उसके प्राणों रक्षा करने वाला समाज ग्यात अग्यात भूल या सामान्य उपेक्षा कुत्ते का पिल्ला भी मर जाये तों गंगा स्नान और प्रायश्चित करने वाले समाज को गर्भ में पल रहे शिशु में न प्राणी दिखा न जीव ,नआत्मा न परमात्मा इतना निर्मम निष्ठुर निर्दयी कैसे हो सकता है।
वो ये संकल्पना क्यों नहीं कर रहा कि वो बेटी सीता सावित्री दुर्गा हो सकती है। उसमें से कोई इंदिरा गांधी ,प्रतिभा पाटिल ,किरण बेदी,कल्पना चावला पीटी ऊषा ,लता मंगेशकर ,ऐश्वर्या हो सकती है, चींटी को भी नहीं मारने वाले समाज को इसमें हत्या प्रतीत नहीं होती! तो ऐसे समाज को
व्यापक चिंतन की आवश्यकता है।
भ्रूणहत्या न केवल अपराध अपितु पाप है सौ अश्वमेध से भी उसकी मुक्ति संभव नहीं है।
वर्तमान परिपेक्ष्य देखें तो भ्रूणहत्या के कारण लिंगानुपात में व्यापक अंतर आ गया। कई राज्यों की तो बहुत बुरी स्थिति हो गई है। लडकियों के अभाव लडकों को विवाह से वंचित रहना पड रहा है। दूसरा परिवर्तन दहेज तो दूर लडकी वाले शादी में बरात नहीं बुला रहे या यूं कहें लडकियों की बारात जाने लगी है ।
पहले महिलायें श्मशान में नहीं जाती थी आज कई सैनिकों की बेटियों को कंधा देते व अंतिम संस्कार करते हम देखते हैं। पूर्व केंद्रीय मंत्री गोपीनाथ मुंडे जी का अंतिम संस्कार उनकी पुत्री ने ही किया था।
बेटियां कुछ हद तक बेटों से अच्छी सेवा कर सकती है। भ्रूणहत्या के विविध कारणों के लिए कानूनों में अनवरत संशोधन किये जा रहे है।
भारतीय दंड संहिता कुछ स्थितियां बतायी गई है जब गर्भीणी की जीवन रक्षा व गर्भ के कारणों को अपराध मुक्त माना गया है भा.द.स.की धारा.312 से .316 तक मे इसके दण्ड का विधान है पर लिंग परीक्षण और भ्रूणहत्या के लिए कानून और कठोर किये जाने की आवश्यकता है साथ ही समाज जागरण आसपास के वातावरण में मूलकारणों की भ्रांतियों को दूर करने मे ही स्थायी समाधान संभव है।