कोटा राज्य का इतिहास

कोटा प्रारंभ में बूंदी रियासत का ही एक भाग था। यहा हाड़ा चौहान का शासन था। शाहजहा के समय 1631ई. में बॅूदी नेरश राव रतनसिंह के पुत्र माधोसिंह को कोटा का पृथक राज्य देकर उसे बूंदी से स्वतंत्र कर दिया। तभी से कोटा स्वतंत्र राज्य के रूप में  अस्तित्व में आया।

कोटा पूर्व में कोटिया भी के नियंत्रण में था जिसे बूंदी के चौहान वंश के संस्थापक देवा के पौत्र जैत्रसिंह ने मारकर अपने  अधिकार में कर लिया। कोटिया भील के कारण इसका नाम कोटा पड़ा। माधोसिंह के बाद उसका पुत्र यहाॅ का षासक बना जो औरंगजेब के विरूद्ध धरमत के उत्तराधिकार युद्ध में मारा गया।

झाला जालिमसिंह (1769-1823ई.):-

 कोटा का मुख्य प्रशासक एवं फौजदार था। बड़ा कूटनीतिज्ञ एवं कुशल प्रशासक था। मराठों, अंग्रेजो एवं पिंड़ारियों से अच्छे संबंध होने के कारण कोटा इनसे बचा रहा । दिसम्बर,1817ई. में यहाॅ के फौजदार जालिमसिंह झाला ने कोटा राज्य की और से ईस्ट इंडिया कम्पनी से संधि कर ली। रामसिंह का पौत्र था।  को कोटा से अलग कर ‘झालावाड‘ का स्वतंत्र राज्य दे दिया गया। इस प्रकार 18387ई. मे झालावाड़ एक स्वतत्र रियासत बनी। यह राजस्थान में अंग्रेजो द्वारा बनाई गई आखरी रियासत थी। इसकी इसकी राजधानी झालावाड़ रखी गई।

1947 में देष स्वत्रंता होने के बाद मार्च, 1948 में कोटा का राजस्थान संघ में विलय हो गया और कोटा महाराव भीमसिंह इसके राजप्रमुख बने एवं कोटा राजधानी बाद में इसका विलय वर्तमान राजस्थान में हो गया।

Leave a Reply