राजस्थान का एकीकरण

स्वतंत्रता प्राप्ति के समय राजस्थान 19 देशी रियासतों, 3 चीफशिप (ठिकाने) कुशलगढ़, लावा व नीमराणा तथा चीफ कमिश्नर द्वारा प्रशासित अजमेर –मेरवाडा प्रदेश में विभक्त था | यह अपने वर्तमान स्वरूप में 1 नवम्बर, 1956 को आया | इससे पूर्व राजस्थान राजस्थान निर्माण के निम्र चरणों में से गुजरा:-

(1)     प्रथम चरण –  अलवर, भरतपुर, धौलपुर व करौली रियासत व चिफशिप नीमराना को मिलाकर मत्स्य संघ का निर्माण किया गया व इसका उद्घाटन केंद्रीय मंत्री एन. वी. गाडगिल द्वारा किया गया | महाराजा 18 मार्च, 1948 धोलपुर उदयभानसिंह को राजप्रमुख, महाराजा करोली को उपराज प्रमुख और अलवर प्रजामंडल के प्रमुख नेता श्री शोभाराम कुमावत को मत्स्य संघ का प्रधानमंत्री बनाया गया | अलवर  इसकी राजधानी बनी | इसे मत्स्य संघ नाम श्री के. एम. मुंशी के आग्रह पर दिया गया |

(2)     द्वितीय चरण बांसवाडा,बूंदी, डूंगरपुर, झालावाड, कोटा, प्रतापगढ़, टोंक, किशनगढ़ व् शाहपुर रियासत तथा राजस्थान संघ चीफशिप कुशलगढ़ को मिलाकर राजस्थान संघ का निर्माण किया गया है कोटा के महाराव 25 मार्च, 1948 भीमसिंह को राजप्रमुख, बूंदी महाराजा बहादुर सिंह को उपराजप्रमुख तथा प्रो. गोकुललाल असावा को प्रधानमंत्री बनाया गया | कोटा को राजधानी बनाया गया | इसका उद्घाटन भी श्री गाडगीळ के हाथो ही संपन्न हुआ|

(3)     तृतीय चरण राजस्थान संघ में उदयपुर रियासत का विलय कर संयुक्त राजस्थान का निर्माण हुआ | पंडित जवाहरलाल नेहरू द्वारा इसका उद्घाटन किया गया | महाराणा मेवाड –भूपालसिंह राजप्रमुख व् माणिक्यलाल वर्मा प्रधानमंत्री बने | उदयपुर को इस नए राज्य की राजधानी बनाया गया | कोटा महाराव भीमसिंह को उपराजप्रमुख बनाया गया | मंत्रिपरिषद में श्री गोकुल लाल असावा (शाहपुरा) उपप्रधानमंत्री तथा सर्वश्री अभिन्न हरि (कोटा), मोहनलाल सुखाडिया, भूरेलाल बया, प्रेमनारायण माथुर (तीनो उदयपुर) और ब्रजसुन्दर शर्मा (बूंदी) मंत्री के रूप में शामिल किए गए |

(4)     चतुर्थ चरण संयुक्त राजस्थान में जयपुर, जोधपुर, बीकानेर एवँ जेसलमेर का विलय कर भारत के उप प्रधान मंत्री श्री सरदार वल्लभ भाई पटेल द्वारा जयपुर में वृहत् राजस्थान का विधिवत उद्घाटन किया गया |इस समय जयपुर, जोधपुर, बीकानेर जेसलमेर और सिरोही की पांच रियासतें ही एसी बची थी जो एकीकरण में शामिल नही हुई थी | इनके अलावा 19 जुलाई 1948 को केंदीय सरकार के आदेश पर लावा चिफशिप को जयपुर राज्य में शामिल कर लिया गया जबकि कुशलगढ़ की चीफशिप पहले से ही बांसवाडा रियासत का अंग बन चुकी थी | श्री शास्त्री की मंत्रिपरिषद में सर्वश्री सिद्धराज ढडढा (जयपुर) प्रेमनारायण माथुर और भूरेलाल बया (दोनों उदयपुर) वेदपाल त्यागी (कोटा), फूलचंद बापणा नृसिंह कछवाहा और रावराजा हणूत सिंह (तीनों जोधपुर) और रघुवर दयाल गोयल (बीकानेर) को मंत्रियों के रूप में शामिल किया गया | जयपुर महाराज सवाईमानसिंह को आजीवन राजप्रमुख, उदयपुर महाराणा भूपालसिंह को महाराज प्रमुख, कोटा के महाराज श्री भीमसिंह को उपराजप्रमुख व श्री हीरालाल शास्त्री को प्रधानमंत्री बनाया गया | श्री पी. सत्यनारायण राव की अध्यक्षता में गठित कमेठी की की सिफारिशों पर जयपुर को राजस्थान की राजधानी घोषित किया गया | हाई कोर्ट जोधपुर में, शिक्षा विभाग बीकानेर में, खनिज और कस्टम व् एक्साइज विभाग उदयपुर में, वन और सहकारी विभाग कोटा में एवँ कृषि विभाग भरतपुर में रखते का निर्णय किया गया|

(5)     पंचम चरण भारत सरकार ने शंकरराव देव समिति की सिफारिश को ध्यान में रखते हुए मत्स्य संघ को वृहत राजस्थान में मिला दिया | वहां के प्रधानमंत्री श्री शोभाराम को शास्त्री मंत्रिमंडल में शामिल  कर लिया गया |

(6)    षष्टम चरण मत्स्य की तरह सिरोही के विलय के प्रश्न पर भी राजस्थानी और गुजराती नेताओ के मध्य काफी मतभेद थे| अतः जनवरी 1950 में सिरोही का विभाजन करने और आबू व् देलवाडा तहसीलों को बम्बई प्रान्त और शेष भाग को राजस्थान में मिलाने का फेसला लिया गया | इसकी क्रियांविन्ति 7 फरवरी, 1950 को हुई | लेकिन आबू और देलवाडा को बम्बई प्रान्त में मिलाने के कारण राजस्थान वासियों में व्यापक प्रतिक्रिया हुई | जिससे 6 वर्ष बाद राज्यों के पुनर्गठन के समय इन्हे वापस राजस्थान को देना पड़ा | 26 जनवरी,1950 को भारत के संविधान लागु होने पर राजपुताना के इस भू-भाग को विधिवत ‘राजस्थान’ नाम दिया गया |

(7)     सप्तम चरणराज्य पुनर्गठन आयोग (श्री फजल अली की अध्यक्षता में गठित) की सिफारिशों के अनुसार सिरोही की आबू व् दिलवाडा तहसीलें, मध्यप्रदेश के मंदसोर जिले की मानपुरा तहसील का सुनेर टप्पा व अजमेर –मेरवाडा क्षेत्र राजस्थान में मिला दिया गया तथा राज्य के झालावाड जिले का सिरोंज क्षेत्र मध्यप्रदेश में मिला दिया गया |इस प्रकार विभिन्न चरणों से गुजरते हुए राजस्थान निर्माण की प्रक्रिया 1 नवम्बर, 1956 को पूर्ण हुई और राजस्थान का वर्तमान स्वरूप अस्तित्व में आया |    

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