राजस्थान – भौगोलिक स्थिति एंव विस्तार
राजस्थान भारत के पश्चिमी भाग में 23 डिग्री 3 उत्तरी अक्षांश से लेकर 30 डिग्री 12 उत्तरी अक्षांश के मध्य तथा 69 डिग्री 30 पूर्वी देशांतर से 78 डिग्री 17 पूर्वी देशांतर के मध्य स्थित है और इसकी पश्चिमी सीमा पाकिस्तान से लगी है। राज्य के उत्तर में पंजाब, पूर्व में उत्तर प्रदेश, उत्तर-पूर्व में हरियाणा, दक्षिण-पूर्व में मध्य प्रदेश और दक्षिण पश्चिम में गुजरात राज्य स्थित है। राज्य का क्षेत्रफल लगभग 324,279 वर्ग किलोमीटर है। भौगोलिक दृष्टि से राजस्थान के पूर्व में गंगा-यमुना नदियों के मैदान, दक्षिण-पश्चिम में गुजरात के उपजाऊ मैदान, दक्षिण में मालवा का पठार तथा उत्तर एंव उत्तर-पूर्व में सतलग व्यास नदियों के मैदान द्वारा घिरा है। इसका पूर्व से पश्चिम का विस्तार 869 किलोमीटर और उत्तर से दक्षिण का विस्तार 823 किलोमीटर है। कर्क रेखा इसके दक्षिणी सिरे को छूती हुई जाती है।राजस्थान न केवल भारत का सबसे बड़ा राज्य है, बल्कि यह विश्व के अनेक देशों जैसे आस्ट्रिया, ग्रेट ब्रिटेन, इटली, नार्वें, पोलैंड, इक्वेडोर, मलेशिया, वियतनाम, न्यूजीलैंड इत्यादि से क्षेत्रफल की दृष्टि में बड़ा है। इसका आकार एक विषमकोण चतुर्भज जैसा है। भारत के कुल क्षेत्रफल का लगभग 1/10 भाग अर्थात 10.74 प्रतिशत राजस्थान में आता है। इसकी सीमा की लंबाई 5920 किलोमीटर है जिसमें से पाकिस्तान को स्पर्श करने वाली अंतराष्ट्रीय सीमा 1070 किलोमीटर है। इस अंतराष्ट्रीय सीमा के इस पार राजस्थान के श्रीगंगानगर, बीकानेर, जैसलमेर और बाड़मेर जिले स्थित हैं। उत्तर में राजस्थान की सीमा पंजाब के फिरोजपुर जिले से, उत्तर-पूर्व में हरियाणा के हिसार, सिरसा, महेन्द्रगढ़ और गुड़गाव से, पूर्व में उत्तर-प्रदेश के मथुरा व आगरा से, दक्षिण-पूर्व में मध्यप्रदेश के मुरैना, शिवपुरी, गुना, राजगढ़, मंदसौर और रतलाम से, दक्षिण-पश्चिम में गुजरात के पंचमहल, साबरकांठा व बनासकंठा से स्पर्श करती है।
राजस्थान के प्राकृतिक भाग
- पश्चिमी बालुका मैदान या थार मरुस्थल
- अरावली श्रेणी और पहाड़ प्रदेश
- पूर्वी मैदान
- दक्षिणी-पूर्वी पठार
राजस्थान की प्राकृतिक संरचना एक समान नही है। यहां कहीं पहाड़ हैं तो कहीं मैदान, कहीं विस्तृत मरुस्थल है तो कहीं लहलहाते खेत। यह भारत का एक मात्र ऐसा राज्य है जहां पहाड़. पठार, मैदान, रेतीली बं भूमि, नदी घाटी के बीहड़ों, प्राकृतिक एंव कृत्रिम झीलों, बारहमासी से लेकर बरसाती नदी, नालों और पहाड़ों से भरा-पूरा है।
राजस्थान भारतवर्ष के पश्चिम भाग में स्थित है। इसकी प्राकृतिक रचना में अरावली पर्वत का महत्वपूर्ण स्थान है जिसको संसार का सबसे प्राचीनतम पर्वत माना गया है। अरावली पर्वतों के उत्तर-पश्चिमी भाग में थार मरुस्थल स्थित है। बलुका स्तूपों की दृष्टि से यह देश का अद्वितीय क्षेत्र है। पूर्वी भाग में मैदान हैं जो नदियों द्वारा निर्मित हैं तथा दक्षिणी-पश्चिमी भाग में पठार हैं जो दक्षिणी पठार का ही एक भाग है। राजस्थान के वर्त्तमान भौगोलिक स्थिति के अनुसार इसे चार प्राकृतिक भागों में बाँटा जा सकता है:-
(1) पश्चिमी बालुका मैदान या थार मरुस्थल –
राज्य का लगभग 61 प्रतिशत हिस्सा बालुका मैदान या मरुस्थल है। राजस्थान में अरावली पर्वत श्रेणियों के पश्चिम में पश्चिमी बालुका मैदान अथवा रेतीला मैदान स्थित है। इस क्षेत्र को थार मरुस्थल भी कहते हैं। इस भाग की पश्चिमी सीमा पाकिस्तान से मिली है। इसका विस्तार मुख्यत: श्रीगंगानगर, बीकानेर, चुरु, नागौर, जोधपुर, जैसलमेर, बाड़मेर, पाली, सिरोही, जालौर, सीकर व झुंझुनू जिले में है। इसकी धरातलीय सतह रेत युक्त है और कहीं-कहीं चट्टान हैं। इस क्षेत्र में जल का आभाव अधिक है।
ये रेतीले मैदान रेतीले टीलों से भरे है जो कभी-कभी 50 से 100 मीटर तक ऊँचे तथा 8 से 10 किलोमीटर तक लंबे है। जैसलमेर तथा बाड़मेर में स्थित रेत के टीले स्थित है जबकि चुरु, सींकर और नागौर जिलों में ये टीले स्थानान्तरित होते रहते हैं।
गर्मियों में हवा के तेज बहाब के कारण बालू के ये टीलों स्थानान्तरित होते रहते है, जिसके कारण रेत सड़कों पर, खेतों आदि में फैल जाता है। मरुभूमि का पश्चिमी भाग पाकिस्तान की अंतराष्ट्रीय सीमा से1070 किलोमीटर लगा है। इस क्षेत्र में गर्मी तथा सर्दी दोनों की अधिकता रहती है तथा पूरा क्षेत्र मरुस्थल है। भूमि रेतीली व बं होने के कारण यह कृषि योग्य नही है साथ ही मिट्टी में सोडियम लवण भी विद्यमान है। तापमान की अधिकता के कारण इस प्रदेश में वाष्पीकरण अधिक होता है। परिणाम स्वरुप विभिन्न स्थानों पर निम्न गताç में सोड़ा व नमक का जमाव दृष्टिगोचर होता है।
गर्म और शुष्क मौसम की अवधि में दक्षिण-पूर्वी पवनों के द्वारा कच्छ की खाड़ी से नमक इस भू-भाग में लाया जाता है। इस प्रदेश में सांभर, डिगान, कूचामन और डीड़वाना नमकीन पानी की झीलें हैं।
श्रीगंगानगर जिले के तीन-चौथाई भाग में “छग्धर का मैदान” है। यह मैदान प्राचीन एंव महत्वपूर्ण “छग्धर” नदी द्वारा बनाया गया है। यह क्षेत्र थोड़ा उपजाऊ है। इस क्षेत्र में भी रेतीले मैदान, बालुका स्तूप और छोटी-छोटी बालू की पहाड़ियाँ हैं। अब इस क्षेत्र में भाखड़ा नगर तथा गंगानहर के आ जाने के कारण काफी समृद्ध हो गया है।
रेगिस्तानी भूमि का मुख्य हिस्सा बीकानेर, जैसलमेर तथा बाड़मेर में है। इस क्षेत्र में पूर्व से पश्चिम तथा उत्तर से दक्षिण की ओर ढलान है। इस भाग में वर्षा काफी कम पाई जाती है। वर्षा का औसत 10 से 20 से.मी. रहता है। प्राकृतिक वनस्पति के नाम पर कुछ कटींली झाडियां ही उगती है। ऊँट यहां का प्रमुख पशु है जबकि भेड़, बकरियाँ, गाय भी पाली जाती है।
अर्द्ध मरुस्थलीय भाग में नागौर, सीकर, झूंझुनू जिले तथा पश्चिमी जोधपुर, पाली जिले हैं। यहां वर्षा ॠतु में घासें उगती है। यहां वर्षा का औसत 20 से 40 से.मी. है। इस क्षेत्र में थोड़ी बहुत कृषि होती है।
लूनी बेसिन इस क्षेत्र का सबसे उपजाऊ क्षेत्र है। यह क्षेत्र अजमेर के दक्षिणी-पश्चिमी भाग से जोधपुर जिले के दक्षिण-पूर्वी भाग, पाली, जालौर और सिरोही तक विस्तृत है। लूनी नदी के बहाव द्वारा लाई गई मिट्टी के जमाव के कारण यह क्षेत्र कृषि के लिए उपयुक्त है।
यह क्षेत्र भारतीय उपमहाद्वीप के थार मरुस्थल का हिस्सा है जो पश्चिम में सिंध, बलूतिस्तान से लेकर अरब तक फैला है। थार के इस मरुस्थलीय प्रदेश में जिप्सम, लिग्नाइट, मुल्तानी मिट्टी आदि खनिज पाए जाते हैं। यहां के निवासियों का मुख्य उद्यम कृषि एंव पशुपालन है। बाजरा व ज्वार प्रमुख फसलें हैं जो बीकानेर क्षेत्र में पश्चिमी भागों पर नहरों से एवं जैसलमेर के समीपवर्ती भूमिगत जल स्रोत्रों से नलकूपों के द्वारा सिंचाई कर उत्पादित की जाती है। उपर्युक्त भूमि में वर्षा की कम मात्रा के कारण कृषि क्षेत्र का प्रतिशत कम है।
(2) अरावली श्रेणी और पहाड़ प्रदेश –
यह प्रदेश राजस्थान की मुख्य एंव विशिष्ट पर्वत श्रेणी है। यह विश्व की प्राचीनतम् पर्वत श्रृंखलाओं में से एक है। यह दक्षिण-पश्चिम में सिरोही से प्रारंभ होकर उत्तर-पूर्व में खेतड़ी तक तो श्रृंखलाबद्ध है और आगे उत्तर में छोटी-छोटी श्रृंखलाओं के रुप में दिल्ली तक विस्तृत है।
भू-गार्भिक इतिहास की दृष्टि से अरावली श्रृंखला धारवाड़ समय के समाप्त होने के साथ से संबधित है। यह श्रृंखला समप्राय: थी और केम्ब्रियन युग में पुन: उठी और विध्ययन काल के अंत तक यह पर्वत श्रृंखला अपने अस्तित्व में आयी। सर्वप्रथम यह श्रृंखला मेसाजोइक युग में समप्राय: हुई और टरशरी काल के प्रारंभ में पूर्व पुनरोत्थित हुई। इसका दक्षिण की ओर विस्तार जो इस समय समुद्र के नीचे है। टरशरी काल में दक्कन ट्रेप के एकत्रीकरण के पश्चात् हुआ। इस प्रदेश में फाइलाईट्स, शिष्ट, नीस और ग्रेनाइट चट्टानों की प्रधानता है। इस प्रदेश की ऊँचाई 1225 मीटर है। इस पर्वत क्रम की चोटियों में गुरुशिखर (1727 मीटर) सर्वाधिक ऊँची है। अन्य में सेर (1597 मीटर), जरगा (1431 मीटर), अचलगढ़ (1370 मीटर), रघुनाथगढ़ (1055 मीटर), खौ (920 मीटर), तारागढ़ (873 मीटर), बाबाई (792 मीटर),
भैराच (792 मीटर) व बैराठ (704 मीटर) है। अरावली पर्वत श्रृंखला का विस्तार बाँसवाड़ा, सिरोही, जयपुर, अजमेर, सीकर और अलवर जिलों में है। इस पर्वत क्रम को चार भागों में बाँटा जा सकता है:-
(1) उत्तरी-पूर्वी पहाड़ी श्रेणी
(2)मध्य अरावली श्रेणी – जिसे पुन: दो भागों में बाँटा जा सकता है:-
(अ) शेखावटी निम्न पहाड़ियाँ व (ब) मेरवाड़ पहाड़ियाँ
(3) मेवाड़ पहाड़ियाँ और भोराट पठार तथा
(4) आबू पर्वतक्रम।
(1) उत्तरी-पूर्वी पहाड़ी प्रदेश – यह जयपुर जिले के उत्तरी-पश्चिमी भागों में तथा अलवर जिले के अधिकांश भागों में विस्तृत है। इस भाग में चट्टानी और प्रपाती पहाड़ियों के कई समानान्तर कटक सम्मिलित हैं। अरावली का यह भाग श्रृंखला-फाइलाईट और क्वार्टज से निर्मित है। इस प्रदेश की दिल्ली क्रम की अन्य चट्टानें चूने के पत्थर से निर्मित है। दिल्ली के दक्षिण में स्थित पहाड़ियों की ऊँचाई समुद्रतल से ३०६ मीटर है। अन्य प्रमुख श्रृंखलाओं भैराच (792 मीटर), बैराठ (704 मीटर) अलवर जिले में, बाबाई (792 मीटर), खौ (920 मीटर) जयपुर जिले में, रघुनाथगढ़ (1055 मीटर), सीकर जिले में है।
(2) मध्य अरावली पर्वत श्रेणी – यह अजमेर, जयपुर तथा टोंक जिलों के दक्षिण-पश्चिम में स्थित है। यह अरावली पर्वत क्रम का मध्यवर्ती भाग है। इसके अन्तर्गत पश्चिम में बिखरे कटक, अलवर पहाड़ियाँ, करोली उच्च भूमि और बनास मैदान सम्मिलित है। इसे (अ) शेखावटी निम्न पहाड़ी प्रदेश और (ब) मेरवाड़ पहाड़ी प्रदेश में विभाजित किया जा सकता है।
(अ) शेखावटी निम्न पहाड़ी प्रदेश में सांभर झील से प्रारंभ होने वाली सबसे लंबी श्रेणी झुंझुनू जिले में सिहना तक जाती है। इनके अतिरिक्त अनेक छोटी-छोटी पहाड़ियां हैं जिनमें पुराना धाट, नाहर गढ़, आड़ा, डूंगर, राहोड़ी, तोरा वाटी आदि हैं। इन पहाड़ियों की औसत ऊँचाई 400 मीटर है।
(ब) मेरवाड़ पहाड़ी प्रदेश मारवाड़ के मैदान को मेवाड़ के उच्च पठार से पृथक करने वाली पर्वत श्रेणी है जो अजमेर के निकट प्रकट होती है। इन पहाड़ियों में तारागढ़ (870 मीटर) प्रमुख है जो अजमेर के निकट है। इसके पश्चिम में नाग पहाड़ है। संपूर्ण प्रदेश की औसत ऊँचाई ५५० मीटर है।
(3) मेवाड़ पहाड़ियाँ और भौराट पठार – मेवाड़ पहाड़ियाँ और भौराट पठार वह हैं जो पूर्वी सिरोही, उदयपुर के पूर्व में संकीर्ण पट्टी को छोड़कर लगभग संपूर्ण उदयपुर और डूंगरपूर जिलों में विस्तृत है। इस भाग के पूर्व में अरावली हास्र्ट अथवा भ्रशोत्थ के रुप में १५३० मीटर तक है। इस भू-भाग में वलन की सामान्य संरचना उत्तर-पूर्व से दक्षिण-पश्चिम की ओर समनति वलनों के नति लम्ब के सहारे दृष्टिगोचर होती है। इस भाग की औसत ऊँचाई 1225 मीटर है। जरगा पर्वत (1431 मीटर) यहां का सर्वाधिक ऊँचा शिखर है। भौराट पठार और उसकी समीपवर्ती कटकें संश्लिष्ठ गाँठ जैसा प्रतीत होता है। इस पठार के पूर्व की ओर कई पर्वत स्कन्ध हैं जिनमें दक्षिण सिरे का पर्वत स्कन्ध (500-600 मीटर) महत्वपूर्ण है।
(4) आबू पर्वत क्रम – यह अरावली श्रृंखला के दक्षिण-पश्चिम में स्थित है। यह सिरोही जिले में पहाड़ियों के गुच्छे के रुप में विस्तृत है। इसकी प्रमुख विशेषता आबू के निकट प्राय: पृथक पहाड़ी के रुप में है। आबू पर्वत 19 किलोमीटर लंबा और 8 किलोमीटर चौड़ा है जो समुद्रतल से 1200 मीटर ऊँचा है। आबू से सटा हुआ उड़िया पठार आबू से लगभग 160 मीटर ऊँचा है और गुरु शिखर के मुख्य शिखर के नीचे है। गुरु शिखर (1727 मीटर), सेर (1597 मीटर) और अतलगढ़ (1380 मीटर) आदि यहां के प्रमुख शिखर हैं। आबू के पश्चिम में आबू, सिरोही श्रेणियां है। यह आबू श्रेणियों की अपेक्षा बहुत नीची है और पश्चिम में जाने पर ये श्रेणियां छितरी पहाड़ियों के वर्ग के रुप में मिलती है और पालनपुर पहुँचते-पहुँचते सधन हो जाते है।
अरावली पर्वत प्रदेश पूर्व में आर्द जलवायु क्षेत्र तथा पश्चिम में शुष्क जलवायु क्षेत्र के बीच में स्थित होने के कारण एक संक्रमणक क्षेत्र है। आबू पर्वत पर गीष्म ॠतु में सुहावनी ठंडक होती है जबकि शीत ॠतु काफी ठण्ड़ी रहती है। प्राय: जनवरी में तापमान 10-16 डिग्री से तथा जून में 30 डिग्री से अधिक रहता है। सापेक्षिक आद्रता ग्रीष्म ॠतु में 28 प्रतिशत रहती है। अरावली पर्वत प्रदेश में वर्षा की मात्रा उत्तरी और मध्य क्षेत्रों में 80 से.मी. तक तथा दक्षिणी भागों में आबू पर्वत पर 150 से.मी. पाई जाती है। इस पर्वत प्रदेश में मिश्रित पर्णपाती और उपोष्ण सदाबहार वनस्पति विहीन है। समान्यत: धौकड़ा, बरगद, गूलर, आम, जामून, बबूल व खैर आदि के वृक्ष पाए जाते हैं।
अरावली की उपादेयता – अरावली पर्वत विश्व के प्राचीनतम पर्वतों में से एक है। अत: भौगोलिक अध्ययन के लिए यहां पर्याप्त सामग्री उपलब्ध है। इसकी उच्चतम चोटी गुरु शिखर ग्रीष्मकाल में एक शीतल प्रदेश बन जाती है और भारत के मध्यवर्ती भाग में यह सबसे ऊँची चोटी है। इसके अतिरिक्त यह अरब सागर से उठने वाले मानसूनों को रोकता है जिससे इसके पूर्वी प्रदेश में वर्षा हो जाती है परंतु पश्चिमी प्रदेश शुष्क रह जाता है। अरावली पर्वत खनिजों का भी भण्ड़ार गृह है। यहां से इमारतों के लिए पत्थर, सड़कों के लिए पत्थर के छोटे-छोटे टुकड़े तथा अन्य उपयोगी खनिज प्राप्त किए जाते हैं। अरावली से कुछ नदियां निकलती है जो वर्षा ॠतु में बहती है और ग्रीष्मकाल में सूख जाती है। अरावली पर्वत के पूर्वी ढालों पर घने वन पाए जाते हैं जिनसे अनेक वस्तुएं उपलब्ध होती हैं जैसे जलाने व फर्नीचर के लिए लकड़ी, गोंद, लाख, शहद, मसाले आदि। अरावली के ढालों पर चारागाह भी बन गए हैं। अरावली पर्वत पर बहुत से दर्शनीय स्थल स्थित हैं, जैसे- माउण्ट आबू, चित्तौड़, आमेर, रणकपुर, हल्दी घाटी, आदि। अरावली से एक लाभ यह भी है कि यह पश्चिमी रेगिस्तान से चलने वाली रेतीले आँधियों को पूर्वी भाग में आने से रोकता है।
(3) पूर्वी मैदान –
यह मैदान अरावली श्रृंखला के उत्तर-पूर्व, पूर्व और दक्षिण-पूर्व में विस्तृत है। इसके अंतगर्त अलवर, भरतपुर, धौलपुर, सवाई माधोपुर जिले और जयपुर भीलवाड़ा, कोटा, बूँदी, डूंगरपूर, बांसबाड़ा, प्रतापगढ़, उदयपूर और टौंक जिलों के कुछ भाग सम्मिलित हैं।
इस संपूर्ण प्रदेश को निम्नलिखित तीन भागों में बाँटा जा सकता है:-
(1) चम्बल बेसिन,
(2) बनास बेसिन और
(3) मध्यमाही बेसिन
(1) चम्बल बेसिन – कोटा, बूँदी, टौंक, धौलपुर, सवाई माधोपुर और धौलपुर जिलों में विस्तृत है। चंबल घाटी की स्थलाकृति पहाड़ियों और पठारों से निर्मित है। संपूर्ण घाटी में नवीन जलोठ जमाव पाये जाते हैं। इस क्षेत्र में बाढ़ के मैदान, नदी कंगार, बीहड़ व अन्त: सरिता आदि स्थलाकृतियाँ पायी जाती है। चंबल बेसिन में बीहड़ों का क्षेत्र 4500 वर्ग किलोमीटर है। सर्वाधिक महत्वपूर्ण बीहड़ कोटा से बरटां तक और कोटा से धौलपुर तक ऊपरी विंध्ययन कगार में विस्तृत हैं। ये बीहड़ लगभग 400 वर्ष पुराने हैं। चंबल बेसिन प्रदेश में आद्र प्रकार की जलवायु पाई जाती है जहां 60 से.मी. से 100 से.मी. के बीच वर्षा होती है। गीष्म ॠतु में तापमान उच्च रहता है जो कि समान्यत: 30 डिग्री से. से अधिक रहता है जबकि शीत ॠतु में औसत तापमान 17 डिग्री से. रहता है। वर्षा की पर्याप्त मात्रा के कारण धौकड़ा, आम, गूलर, जामून, बबूल, बरगद आदि वृक्ष यहां पर पाए जाते हैं। मिट्टी उपजाऊ कि की एंव कृषि के योग्य है। इस प्रदेश में काँच बालूका, चीनी मृत्तिका तथा चूने के पत्थर की अनेक खानें बहुतायत से मिलती हैं जो कि यहां की अर्थव्यवस्था के विकास में सहायक सिद्ध हुई हैं।
(2) बनास बेसिन – बनास तथा उसकी सहायक नदियों (खारी, सोड़रा, भौसी और मौरल) द्वारा सिंचित यह मैदान दक्षिण में मेवाड़ का मैदान तथा उत्तर में मालपुरा करोली का मैदान कहलाता है। इसका विस्तार उदयपुर के पूर्वी भागों, पश्चिमी चित्तौड़गढ़, भीलवाड़ा, टौंक, जयपुर, पश्चिमी सवाई माधोपुर और अलवर के दक्षिणी भागों तक है। इस मैदान की औसत ऊँचाई 270 मीटर से 500 मीटर के मध्य है। इस मैदान का निर्माण कॉपीय जमावों से हुआ है। मिट्टी की पर्ते पतली व पथरीली है जिनका प्रादुर्भाव यहां ग्रेनाइट और नीस की चट्टानों के अपरदन के कारण हुआ है। वर्षा की मात्रा 60 से.मी. से 90 से.मी. के मध्य होती है लेकिन उपजाऊ मिट्टियाँ एंव सिंचाई सुविधा उपलब्ध होने के कारण राजस्थान का महत्वपूर्ण कृषि प्रदेश है। तापमान गीष्म ॠतु में समान्यत: 36 डिग्री से. से अधिक और शीत ॠतु में 16 डिग्री से. रहता है। मालपुरा-कीरोली का मैदान – किशन गढ़ और मालपुरा के अधिकांश भागों में जलोढ़ जमाव की परतों से अधिक मोटाई का यह भाग 280-400 मीटर की ऊँचाई का है। इसमें शिष्ट और नीस की प्रधानता है।
(3) मध्यमाही बेसिन – उदयपुर के दक्षिण-पूर्व, बाँसबाड़ा और चित्तौड़गढ़ जिलों के दक्षिणी भागों में विस्तृत है। इस क्षेत्र की मुख्य नदी माही है। इस मैदान की औसत ऊँचाई 200 से 400 मीटर है। प्रतापगढ़ और बाँसबाड़ा के मध्य में छप्पन ग्राम स्थित होने के कारण इस मैदान को छप्पन का मैदान भी कहते है। यहां वर्षा का औसत 100 से.मी. है। इसके फलस्वरुप सागवान और बाँस के वृक्ष बहुतायत से मिलते हैं। मध्यमाही बेसिन के लगभग 40 प्रतिशत भाग पर कृषि की जाती है। पश्चिमी भाग पहाड़ी होने के कारण सुगम्य नही है।
(4) दक्षिणी –पूर्वी पठार –
यह राज्य के दक्षिण-पूर्व भाग में स्थित है जो समुद्र तल से 380 मीटर ऊँचा है। इसमें कोटा, बूँदी, झालावाड़, चित्तौड़गढ़ आदि जिले शामिल हैं और राजस्थान के 9.6 प्रतिशत भाग में विस्तृत है। इस प्रदेश में ऊपर की भूमि नर्म और नीचे की भूमि चट्टानी है। इसे हड़ौती का पठार भी कहते हैं। इसमें वर्षा उचित मात्रा में होती है। अत: यहां छायादार वृक्ष, तालाब, नदियाँ, खेती योग्य मैदान आदि पाए जाते हैं। बनास, बाणगंगा, काली सिंध और पर्वती नदियां इसी भाग में बहती हैं। कहीं-कहीं मैदानी भाग में खेती भी होती है। इस भाग में बड़े-बड़े जंगल भी पाए जाते हैं जिससे यहां की वन अर्थव्यवस्था विकसित हो गयी है।
इस पठार को दो भागों में बाँटा जा सकता है:-
(1) विंध्यन कगार भूमि – इसका अधिकांश क्षेत्र बड़े-बड़े बलुआ पत्थरों से निर्मित है जिनके बीच-बीच में स्लेटी पत्थर भी है। इसकी ऊँचाई 350 मीटर से 550 मीटर है। इस भू-भाग में समानान्तर विंध्यन कगार संभवत: ठोस अरावली के कारण वलित और भ्रंशित है। इन कगारों का विस्तार बनास और चंबल के मध्य दक्षिण व पूर्व की ओर और बुन्देलखंड़ के पूर्व तक है। मुख्यत: यह धौलपुर और करौली में हैं।
(2) दक्कन लावा पठार – इसका अधिकांश क्षेत्र बलुका पत्थरों और बीच-बीच में स्लेटी पत्थरों का बना है। यह एक विस्तृत और पथरीला उच्च प्रदेश है। इस भू-भाग में नदी घाटियों में कहीं-कहीं काली मिट्टी के क्षेत्र मिलते हैं। विंध्यन कगारों के आधार तल क्षेत्रों पर दक्कन ट्रेपलावा के जमाव दृष्टिगोचर होते हैं। इसमें कोटा-बूंदी पठार भी सम्मिलित हैं। बूंदी में इसकी सबसे ऊँची चोटी सतपुर के निकट 545 मीटर है। नदियों द्वारा पठारी भाग को काँट-छाँट कर विच्छेदित कर लिया गया है। दक्षिण-पूर्वी पठार के प्रदेश में तापक्रम गीष्म ॠतु में 32 डिग्री से 38 डिग्री से. तथा शीत ॠतु में 14 डिग्री से, से नीचा रहता है। शीत् ॠतु में चक्रवातों के द्वारा थोड़ी सी वर्षा हो जाती है।